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Meenakshi Yog shikshika Meenakshi Yog shikshika Yoga

Meenakshi Yog Shikshika Rohini Delhi by Buddha Yogshala & HYC.

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Congratulation!!

Meenakshi

Buddha Yogshala & Female Home yoga classes Hired the yoga Teacher “ Meenakshi”

About trainer:-

Meenakshi has passed the 6th month Certificate Yoga Teacher Training (Uttarakhand Sanskrit University).

Education

  • 10 Pass from C.B.S.C Board.
  • 12 Pass from C.B.S.C Board.
  • B.Com Passed from Delhi University.
  • Certificate in yoga from Uttrakhand Sanskrit University.
  • Done M.A Yogic science From Uttarakhand Sanskrit University.

Experience:

Associate From 2017 with Buddha Yogshala & Home Yoga Classes as Yoga therapist & Instructor.

Meenakshi  is now the part of team Buddha Yogshala & Home Yoga Classes.

Where she will teach Online & Home visit yoga classes Delhi India.

hare are some profile pics:-

AWARDED

Power yoga, Yoga therapeutic

Scientific approach to yoga

Hatha Yoga, vinyasa yoga, Prenatal Yoga & Postnatal yoga

Meditation, Yognidra, Relaxation, Children Yoga

If you need a certified yoga trainer

Service for Yoga personal:- Rohini Pitampura Punjabi Bagh Rani Bagh Pashchim vihar Peeragarhi Etc.:

Contact here: – @ 8860794706 or 79829 52967

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Yoga योगाचार्य अर्जुन सिंह

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our services for yoga classes:

1:- Online 2:- Offline

3:- Group 4:- Personal

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Bank Name KOTAK MAHINDRA BANK
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Thank you

Buddha Yogshala Team

IYA

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Yoga योगाचार्य अर्जुन सिंह

(“मोक्ष प्राप्ति”) जीवन में योग की आवश्यकता Need of yoga in life (“Salvation”)

हम क्यों जी रहे हैं ?

जैसे – कुत्ते ,बिल्ली, कीड़े- मकोड़े, हाथी, बंदर, मच्छर-मक्खी जी रहे हैं

नहीं !!

हम लोग मनुष्य हैं।  वास्तव में इस प्रश्न का उत्तर ‘तत्व ज्ञान’ के अंतर्गत आता है।

 मनुष्य जीवन का उद्देश्य है – मोक्ष प्राप्ति”

अर्थात हम मनुष्य ‘मोक्ष’ प्राप्त करने के लिए जी रहे है।  हमे अपने जीवनकाल में वे सरे कार्य करने है जो मोक्ष के मार्ग पर हमे अग्रसर करते है, और उन कार्यो से बचना है, जो उस प्रगति में बाधक बनते है।  मनुष्य के अलावा सभी योनियाँ ‘भोग योनियाँ  है अर्थात सजा पाए हुए जीव है जिसकी सजा पूरी हो जाएगी वह उस योनि से मुक्त हो जायेगा।  मनुष्य योनि ‘कर्म योनि’ है अर्थात इस योनि में आप सारी सजाये काट लेने के पश्चात् ऐसा कर्म करने के लिए आये है कि अपने मोक्ष के मार्ग को प्रशस्त कर सके।  यदि आप चाहे तो अन्य जीवो के समान आलसी और नाली के कीड़े के समान (खाना, संतति  उतपन्न करना , और मर जाना ) जीवन जी सकते हे।

प्रकृति ने इतनी सहजता से जीने लायक वातावरण मनुष्य के लिए नहीं छोड़ा है।  बिभिन्न प्रकार के जानवर, कीट-पतंगे बाघ से लेकर बैक्टीरिया तक सरे जीव आपके स्वास्थ्य को चट कर जाने के लिए त्यार बैठे है, जिस ओर भी आप लापरवाह होंगे उसी ओर चोट पड़ेगी।  समझलो, आपको पैरासूट से एक जंगल में छोड़ दिया गया है।  अब खाना पीना, बचना  मरना आपके हाथ में है।  अब इस जंगल में न तो आप बहुत कठोर बनकर जी सकते है, न बहुत मृदुल रहकर –

इतना कडुवा बनचक्खे वो थूके।

इतना मीठा बन, कि खा जायें बिना भूखे।।

तात्यपर्य यह हे कि सम्यक व्यव्हार करना आपकी मज़बूरी बन जाती है

समत्वं योग उच्यते:-

यही तो श्रीमद-भगवत-गीता में कहा गया है।  ‘समत्व’ अर्थात सम्यक भाव को बनाये रखने के लिए आपको अपने कर्म करने का ऐसा ढंग अपनाना पड़ता है कि ‘समत्व’ वाला नियम न टूटे।  यह काम करने का ढंग अर्थात कर्म करने में ऐसी कुशलता बनाये  रखना  आपके लिए आवश्यक हो जाता है। 

गीता के 6 अध्याय में इसीलिए तो कहा है- योग: कर्मसु कौशलम

अब इन दोनों सिद्धांतो पर चलने के लिए जीवन में कितने स्थानों पर आपका मन करेगा कि  सब कुछ तोड़- फोड़ दू, कितने स्थानों पर इतने प्यारे नजारे उपस्थिति होंगे , मन करेगा कि बस यही बना रहु।

 क्रोध- लालच – मोह- लोभ- ईर्ष्या – द्वेष और जाने क्या क्या स्थितियाँ सम्मुख आएगी। परन्तु उन सबको आप अपनी परिस्थिति के आधार पर झेलेंगे दबाएंगे अथवा अंदर कुढ़ते हुए भी बाहर  प्रकट नहीं होने देंगे,

यही पतंजलि ने कहा है :-

योगश्चित्तव्रत्तिनिरोध:

(चित्त के वृत्तियों का निरोध करना योग है। )

तात्पर्य यह है की योग आपकी जीवन शैली है, कुछ अलग प्रकृिया नहीं है।  जो कुछ आप अपनी जीवन शैली में कर रहे है , शास्त्र उसे ठीक से करने का ढंग बताता है।

जीवन जीने के लिए अगली आवश्यकता  ‘ स्वास्थ्य’ की है।  जो जितना स्वस्थ नहीं,

 वह उतना समझो नर्क में गया।  यदि आप पुरे अस्वस्थ है , तो पुरे नर्क में गए समझो। स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिए हाथ-पेरो का संचालन आवश्यक है।  किस प्रकार के व्यायाम और आसन करने से किस प्रकार का स्वास्थ्य-लाभ होता है।  यह सब योगासन प्रकरण का विषय बन जाता है।  श्वास क्रिया तो सब का मूल है।  तेज श्वास, धीमी श्वास , ठंडी श्वाश, गर्म श्वास आदि विभिन्न प्रकार की श्वास व्यवस्था के लाभ नहीं सम्बन्धी विवेचनाएँ ‘प्राणायाम‘ के अंतर्गत रहती है।

योगाचार्य अर्जुन सिंह

योग्य योगशिक्षक के लिए संपर्क करे  7982952967

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Yoga योगाचार्य अर्जुन सिंह

Multi choice type questions (Demo) for online or offline our Buddha Yogshala Exam, also these helpful for UGC Net Exam 1:- “योग” शब्द की उत्पत्ति किस धातु से हुई हैं ?

1:- “योगशब्द की उत्पत्ति किस धातु से हुई हैं ?

1: संयोग

2: समाधि

3: “यूज”

4: इनमे से कोई नहीं

: 3यूज

2:- पाणिनि के अनुसारयोगशब्द की व्युत्पत्ति किस धातु  से हैं ?

1: युजिर योगे

2: यूज समाधौ

3: यूज संयमें

4: उपरोक्त सभी

:4  (उपरोक्त सभी)

3:- योग का आदि वक्ता किसे मन जाता हैं ?

1: भगवान शिव

2: विष्णु

3: हिरण्यगर्भ

4: पंतजलि

: 3 (हिरण्यगर्भ)

4:- पाणिनि निम्न में से किसके रचियता हैं ?

1: अष्टाध्यायी

2: योग सूत्र

3: गीता

4: योग विशिष्ट

:-1 (अष्टाध्यायी)

5:- योगसूत्र की रचना ?

1: महर्षि पतंजलि

2: वेदव्यास

3: स्वात्माराम

4: इनमे से कोई नहीं
उ: 1 (महर्षि पतंजलि)

अधिक जानकारी के लिए कृपया अपना message कमेंट में डालें.

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Yoga योग करना पडेगा योगाचार्य अर्जुन सिंह

योग की कुछ परिभाषाएँ : (सूर्य व् चंद्र नाड़ी की संयोग तथा परमात्मा से जीवात्मा *****)

योग की कुछ परिभाषाएँ

महर्षि पतंजलि के अनुसार

योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः

चित्त की सभी वृत्तियों के विरोध में उत्पन्न अवस्था योग है। यहाँ पांच इन्द्रियों (ज्ञान) व् पांच कर्मेनिन्द्रियो  को बाहय व्यवहार के लिए जिम्मेदार मन गया है।  इसी प्रकार अंत:व्यवहार के लिए, सिद्धि के लिए मन , बुद्धि एवं अहंकार का उपयोग करता है।  योग दर्शन के मन को ही चित्त कहा गया है , मन की एकाग्रता से ही चित्त वृत्ति का निरोध होता है यही योग है। कह सकते हैं की ‘जब मन विविध विषियो में अपने प्रवृत्ति  रूप कार्यो को  ना करते हुए शांत, व्यवस्थित, निश्चल तथा एकाग्र स्थिति में होता हैं उसी अवस्था को योग कहते हैं।

योगस्थ: कुरु कर्मणि सङ्ग त्यक्त्वा धनज्जय।

सिद्धयसिद्धयो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।। (गीता)


अर्थात कर्मों का संग त्यागकर करना, आसक्ति त्यागकर कर्म करना सुव्यवस्थित होकर शांत व्  निद्व्रन्द्वपूर्वक समस्थिति को प्राप्त योग कहते हैं।

अन्य परिभाषाएँ

1: योग वह अवस्था हैं जिसमे मन, इन्द्रियों और प्राणो की एकता हो जाती हैं।

2: पांच इन्द्रियों, मन व् बुद्धि की  स्थिर अवस्था योग हैं।

3: संयोगो योग इत्युक्तो जीवात्मा  परमात्मनो: ।

अर्थात जीवनमा व् परमात्मा के संयोग की अवस्था योग हैं। 

4: अपान व् प्राण की एकता करना योग हैं।  अर्थात सूर्य व् चंद्र नाड़ी की संयोग तथा परमात्मा से जीवात्मा को मिलन योग हैं। 

5: अग्नि पुराण में ब्रह्म  में चित्त की एकाग्रता योग हैं। 6: रांगेय राघव ने कहा कि :- शिव और शक्ति का मिलान योग हैं 

योगाचार्य अर्जुन सिंह

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